एक सफ़ेद चादर और उस पे चटकीले अबीर, ये कुछ वही एहसास है एक ढीठ, चंचल, अल्लहर लड़की सी...
अगर वो खुद भी ना कहती, तो भी मुझे एहसास है उसके अंदर की चंचलता, शोखिपन और उसकी चपलता का, एक अल्ल्हर्पण है, उसमे जो आपको अंदर तक उद्दवेलित कर दे! एक नौजवान ढीठ नदी सी लड़की है वो,
जब वो साथ ना हो तो मन घूम फिर कर उसी के पास आना चाहता है, उसी से बात करने का जी करता है, बस उसी के रूबरू ....... पता नहीं वो एक साथी है भी या नहीं, पर इस सफ़ेद चादर पे लिपटी हुए अबीर सी है वो! एक नौजवान ढीठ नदी सी लड़की है वो,
वो मनमौजी है, हो भी क्यों नहीं, वह आपसे बात करना चाहती है, बात करती है, उसकी बातो मे गर्माहट हैं. कल कल करती हुई वह बात-बेबात हँसती रहती है... वह और हँसती चली जाती है, सुबह का उजास और शाम की सुरमई चमक के साथ,
पर जब आप उसे अनुराग बस जब छूना चाहते हैं..और वो चली जाती है बलखाती,इठलाती-इतराती, इस तरह उसका अनायास जाना भी अनायास नहीं है! आप कवि हों, ना हों, वो आपमें जीवन के प्रति राग पैदा करती है.
कल भी ये मन उस अबीर के चटकीले रंगों को देखना चाहेगा,उसके बातो की गर्माहट महसूस करना चाहेगा और और उस नौजवान ढीठ नदी सी लड़की को ढूंढेगा........क्यूकि वो पल अनायास नहीं हो सकते है .....................
Thursday, April 22, 2010
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